

Chandra dosh nivaran pujan in Ujjain चंद्रमा से कालचक्र का निर्धारण ऋग्वेद के पहले मंडल के 84वें सूक्त मंत्र में बताया गया है कि चंद्रमा स्वत: प्रकाशमान नहीं है इस सिद्धांत की पुष्टि मंत्र में है। इसी के 105 वें सूक्त में कहा है कि चंद्रमा आकाश में गतिशील है और नित्य गति करता रहता है। एतरेय ब्राह्मण ग्रंथ के मुताबिक वैदिक काल में तिथियां चंद्रमा के उदय और अस्त होने से तय होती थीं। चंद्रमा ही तिथियों के साथ महीने को शुक्ल और कृष्ण पक्ष में बांटता है। इस बारे में तैत्तरीय ब्राह्मण में बताया गया है। कि चंद्रमा का एक नाम पंचदश भी है। जो 15 दिनों में क्षीण हो जाता है और 15 दिनों में पूर्ण हो जाता है। इसके बाद ऋतुओं की बात करें तो अथर्ववेद के 14वें कांड के पहले सूक्त में कहा गया है कि चंद्रमा से ही ऋतुएं बनती हैं। वेदों में बताया गया है कि चंद्रमा के कारण ही ऋतुएं बदलती हैं। वहीं चंद्रमा के प्रभाव से ही 13 महीने हो जाते हैं, जिसे अधिकमास कहते हैं। इस बात का जिक्र वाजसनेयी संहिता में किया गया है। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि पृथ्वी पर उगने वाली औषधियों और वनस्पतियों में रस चंद्रमा से ही आता है।
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